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नारायणमूर्ति ने कहा- हमलावरों ने बर्बाद कर दिया भारत का विज्ञान, 1000 सालों में सोच ही खत्म हो गई

बेंगलुरु
आईटी कंपनी इन्फोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति का कहना है कि भारत यदि विज्ञान पिछड़ गया तो इसकी वजह यह रही 1000 साल तक हमलावरों का राज रहा। उन्होंने कहा कि 1000 साल की अवधि में भारत को विज्ञान में पीछे रह गया और यहां माहौल ऐसा रहा कि युवाओं की उस दिशा में सोच ही विकसित नहीं हो सकी। उन्होंने कहा कि 1000 ईसवी से 1947 तक का काल ऐसा था, जिसमें साइंस को लेकर सोच विकसित नहीं हो सकी। इस दौरान साइंस को लेकर विचार नहीं पनपा और विश्लेषणात्मक सोच का अभाव रहा। यही कारण रहा कि इस अवधि में भारत में नवाचार, आविष्कार या शोध नहीं दिखते।

नारायणमूर्ति ने 2024 इन्फोसिस साइंस प्राइजेज सेरेमनी के दौरान दिए वर्चुअल भाषण में ये बातें कहीं। इजरायल के पूर्व नेता शिमोन पेरेज के भाषण का भी उन्होंने जिक्र किया। पेरेज ने कहा था, 'इज़राइल में हमने अपनी सबसे बड़ी धरोहर को पहचाना है और वह हमारा दिमाग। हमने रचनात्मकता, नवाचार और नए आविष्कारों के माध्यम से बंजर रेगिस्तानों को फलते-फूलते खेतों में बदल दिया और विज्ञान और प्रौद्योगिकी को नई ऊंचाइयां दीं और दुनिया का नेतृत्व किया।' मूर्ति ने कहा किसी भी देश के विकास के लिए ऐसे विचार क्रांतिकारी हैं।

इसके आगे वह कहते हैं कि इतिहास बताता है कि एक दौर में भारत गणित, विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, इंजीनियरिंग, मेडिसिन और सर्जरी में अग्रणी था। वैदिक काल से तब तक ऐसी स्थिति थी, जब तक हमलावरों ने भारत पर आकर कब्जा नहीं किया। 700 से 1520 ई. तक उज्बेकिस्तान से अफगानिस्तान तक के हमलवारों ने अटैक किए और यहां सत्ता भी कायम की। इसके बाद अंग्रेज आ गए, जिन्होंने भारत को अपना उपनिवेश ही बना लिया था। उन्होंने कहा कि जो हमलावर आए थे, उनका साइंस, मैथ से कोई लेना-देना नहीं था। हालांकि उनकी तुलना में अंग्रेजों ने भारतीयों को महत्वाकांक्षी कामों के लिए कुछ हद तक प्रोत्साहित भी किया।

वह कहते हैं कि हमारी प्रोग्रेस धीमी रही है। इसका कारण था कि हमारी युवा पीढ़ी पर बीते दौर की छाप थी। जिज्ञासु दिमागों की कमी हो गई। विश्लेषणात्मक सोच एवं नवाचार का विचार पहले जैसा नहीं रहा। समस्या को समझना और उसका हल निकालना, यह विचार कम दिखा। वह कहते हैं कि स्वतंत्रता के बाद भारत में विज्ञान की दोबारा शुरुआत हुई और इतने कम अरसे में ही हमने दिखाया है कि साइंस के माध्यम से क्या-क्या बदला जा सकता है। इसे अभी और विस्तार देने की जरूरत है।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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