राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

मानवता के लिए अमूल्य उपहार है ‘योग’

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2025

मानवता के लिए अमूल्य उपहार है 'योग'

योग सनातन हिन्दू धर्म और संस्कृति का सम्पूर्ण मानवता के लिए अमूल्य उपहार 

योग एक ऐसी दिव्य अवस्था है जब चेतना और परम चेतना का मिलन होता 

डॉ. मोहन यादव

भोपाल

योग एक ऐसी दिव्य अवस्था है जब चेतना और परम चेतना का मिलन होता है। इस अवस्था को प्राप्त करने का अवसर हर जीव के पास है। योग सनातन हिन्दू धर्म और संस्कृति का सम्पूर्ण मानवता के लिए अमूल्य उपहार है।

हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अथक प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया। साथ ही इस बात का समर्थन किया कि "योग जीवन के सभी पहलुओं के बीच संतुलन स्थापित करने के साथ स्वास्थ्य और कल्याण के लिए समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है"। उन्होंने पूरी दुनिया में समग्र स्वास्थ्य क्रांति के नये युग का सूत्रपात किया। उपचार की जगह रोकथाम पर अब अधिक ध्यान दिया जा रहा है। आज पूरा वैश्विक समुदाय प्रधानमंत्री मोदी का आभार व्यक्त कर रहा है।

हम 11वां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रहे हैं। यह "एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योग" विषय को समर्पिंत है। इसका उद्देश्य मानव कल्याण और एक स्वस्थ ग्रह के बीच संबंध को बढ़ावा देना है। सीधा अर्थ है कि जब शरीर और मन स्वस्थ होता है, तो हम अपने समुदाय और पर्यावरण से बेहतर सामंजस्य रख पाते हैं, उनकी सही देख-रेख कर पाते हैं।

आज पूरे विश्व में एक अदभुत वातावरण बना है। पूरा विश्व आज योग कर रहा है। योग ने विश्व में असंख्य लोगों को सहारा दिया है। हमारे लिये यह गौरव का क्षण है। योग का विधिवत विज्ञान यहाँ सुरक्षित है। योग दर्शन की विरासत से आज पूरा विश्व समाज लाभान्वित हो रहा है। हम इस अलौकिक समय के साक्षी बन रहे हैं। हम आज गौरव और आनंद से भरे हैं। योग, धर्म, जाति और रंग की सीमाओं से परे है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भारत का गौरव बढ़ाने वाला दिवस है साथ ही पूरे विश्व को परम चेतना के प्रति जागृत करने का क्रांतिकारी कदम भी है।

अक्सर सवाल किया जाता है कि योग से क्या मिलता है? इसका सीधा सरल जवाब है योग से मिलती है शांति। मन और तन को सबसे ज्यादा जरूरत है शांति की। अशांत मन और अनियंत्रित तन पूरे समाज को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। योग एक ऐसा दिव्य द्वार है जो शांति की ओर खुलता है। शांति से उपजती है एकाग्रता। धर्म संसद में वेदांत दर्शन पर कालजयी व्याख्यान देने के बाद स्वामी विवेकानंद को अमेरिका में जगह जगह दर्शन पर व्याख्यान देने आमंत्रित किया गया। जब वे अमेरिकन विदयार्थियों के बीच पहुंचे तो विदयार्थियों ने सवाल किया कि पढ़ाई में मन नहीं लगता। स्वामी जी का जवाब था इसका एकमात्र उपाय है एकाग्रता। यह एकाग्रता उपजती है शांत मन से। शांत मन होता है ध्यान से। शांत मन दूषित विचारों से मुक्त होता है। शांति से निर्मित होती है सकारात्मक ऊर्जा। यह ऊर्जा सभी जीवों के लिये कल्याणकारी और हितकारी होती है। शांत चित्त वाला मनुष्य कभी गलत निर्णय नहीं ले सकता। जब शरीर, मन और आत्मा एकाकार हो जायें तो अहित और अशुद्धि का सवाल कहां रह जाता है।

कथा उपनिषद में योग को इंन्द्रियों पर नियंत्रण करने की विद्या कहा गया है। श्रीमद्भगवद् गीता में योग को दुख से वियोग होना कहा गया है। महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र में योग को मन के विचलन पर नियंत्रण की विधा बताया है। महर्षि अरविंद ने तो यहां तक कहा है कि संपूर्ण मानव जीवन ही एक योग है क्योंकि मनुष्य से कई चीजों का जोड़ है।

योग का उद्देश्य परम चेतना में प्रवेश पाना है। यह परम चेतना क्या है जो योग से मिलती है? यह अवस्था ऐसी अवस्था है जब मन केवल न्याय और धर्म के साथ होता है। सिर्फ दया, करूणा, मैत्री और शांति जैसे मूल्य प्रखर होते है। यह अवस्था हर मनुष्य के लिये अनिवार्य है चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या समुदाय का हो या विश्व के किसी भी कोने में रहता हो।

कल्पना करें कि जब एक साथ पूरा विश्व योग करे तो फिर भेदभाव कहां रह जाता है। मन में भौगोलिक सीमाओं का बोध समाप्त हो जाता है। फिर चाहे कोई भी देश हो पूरा विश्व एक हो जायेगा। यौगिक क्रियाओं से यदि मन एकरूप हो जायें तो चित्त की प्रसन्नता निरंतर बनी रहती है।

भारतीय परंपरा में उल्लेख है कि प्रकृति ने ही तमाम योग मुद्राएं सिखाई है। यह सच है कि योग विद्या की विरासत को लगभग विस्मृत सा कर दिया गया था। हमें सिर्फ प्रयासपूर्वक जागने की जरूरत है। योग सदा से विदयमान था। किसी भी धर्म को देखें योग के दर्शन होंगे। योग और यौगिक क्रियाएं जीवन से गहरी जुडी हैं। अब एक नई और ओजपूर्ण शुरूआत हो चुकी है। विश्व में भारत की प्रतिष्ठा स्थापित हुई है।

मैं सभी प्रदेशवासियों से आहवान करता हॅू कि वे योग को अपने जीवन का अह्म हिस्सा बनाए, जिससे तन और मन दौनों स्वस्थ रह सकें।

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

RO.NO.13286/93

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button