राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

जम्मू-कश्मीर में 25 किताबों पर प्रतिबंध, लेखक और राजनीतिक दलों ने जताया विरोध

श्रीनगर 

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने हाल ही में 25 किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस फैसले का विरोध करते हुए नागरिक समाज, लेखक, और विभिन्न राजनीतिक दलों ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर हमला करार दिया है।

प्रशासन का दावा है कि ये किताबें झूठे नैरेटिव और अलगाववादी विचारधाराओं को बढ़ावा देती हैं। इसके बाद पुलिस ने कश्मीर घाटी के कई हिस्सों में छापेमारी कर इन किताबों को जब्त करना शुरू कर दिया। यह कदम जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए चिंताएं पैदा कर रहा है।

किताबों पर बैन के बाद विवाद

जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा 25 किताबों पर प्रतिबंध लगाने के बाद राज्य में विवाद गहरा गया है। इस फैसले का विरोध देशभर के नागरिक समाज कार्यकर्ताओं, लेखक समुदाय और विभिन्न राजनीतिक दलों ने किया है। इनका कहना है कि इस कदम से राज्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कड़ा हमला हुआ है। प्रतिबंधित पुस्तकों में भारतीय संवैधानिक विशेषज्ञों और बुद्धिजीवियों द्वारा लिखी गई किताबें शामिल हैं। इन किताबों को प्रतिबंधित करने के प्रशासनिक कदम को कुछ लोगों ने ‘तानाशाही’ और ‘लोकतांत्रिक आवाज़ों का गला घोंटना’ करार दिया है।

प्रशासन का दावा

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा कि यह कदम विध्वंसकारी और राष्ट्र-विरोधी सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए उठाया गया है। पुलिस का दावा है कि ये किताबें भारत की संप्रभुता और एकता के लिए खतरा पैदा कर सकती थीं। श्रीनगर पुलिस ने छापेमारी कर इन किताबों को जब्त किया। हालांकि, इस कदम को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं कि क्या प्रशासन किताबों पर बैन लगाकर लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन कर रहा है।

लेखकों और राजनीतिक दलों का विरोध

इस प्रतिबंध का विरोध करते हुए प्रमुख लेखक और राजनीतिक दलों ने इसे लोकतंत्र और संस्कृति के खिलाफ करार दिया है। डेविड देवदास, जिनकी पुस्तक ‘इन सर्च ऑफ ए फ्यूचर– द स्टोरी ऑफ कश्मीर’ इस सूची में शामिल है, ने कहा कि किताबों पर प्रतिबंध लगाना हमारी संस्कृति और लोकतंत्र की अवधारणा के खिलाफ है। उनका कहना था कि यह कदम कश्मीर की वास्तविकता और संघर्ष को दबाने का प्रयास है।

राजनीतिक दलों का रुख

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने भी इस कदम का विरोध किया और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया। पार्टी ने आरोप लगाया कि यह कदम भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन का हिस्सा है।

किताबों पर प्रतिबंध का इतिहास

इतिहास में कई बार किताबों को प्रतिबंधित किया गया है, जिनका उद्देश्य विचारों को दबाना था। लेखक और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इस कदम को लोकतंत्र और विचारों की स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं। यह चिंता बढ़ाने वाली बात है कि कैसे एक राज्य सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नियंत्रण लगाने की कोशिश कर रही है।

किताबों पर प्रतिबंध कदम सही था?

इस किताबों पर प्रतिबंध का सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रशासन को ऐसा कदम उठाने का अधिकार था? क्या यह कदम सही था या यह संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है? राज्य और राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया गया या फिर यह किसी राजनीतिक कारणवश किया गया? इन सवालों का जवाब आने वाले दिनों में मिल सकता है।

ब्लैक स्पॉट और लोकतंत्र पर असर

जब जम्मू-कश्मीर को राज्य से केंद्र शासित प्रदेश में बदला गया था, तब से लगातार लोगों के अधिकारों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। इस फैसले के बाद फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स जैसे नागरिक अधिकार समूहों ने चिंता व्यक्त की है कि यह कदम लोकतंत्र और स्वतंत्रता पर गंभीर असर डाल सकता है।

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button