राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

तलाक विवाद में दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, महिला की याचिका खारिज

नई दिल्ली 
दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए अपने एक अहम फैसले में कहा है कि वैवाहिक विवाद में नाबालिग बच्चे को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना गलत है। हाईकोर्ट ने यह माना है कि पति या पत्नी द्वारा नाबालिग बच्चे को जानबूझकर दूसरे माता-पिता से अलग करने की कोशिश न सिर्फ मनोवैज्ञानिक क्रूरता है, बल्कि यह तलाक का वैध आधार हो सकता है। हाईकोर्ट ने यह फैसला एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया, जिसने सितंबर 2021 में एक फैमिली कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें क्रूरता के आधार पर विवाह को भंग कर दिया गया था।

रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने 19 सितंबर को दिए अपने आदेश में कहा कि वैवाहिक विवादों में बच्चे को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से न केवल दूसरे माता-पिता को नुकसान पहुंचता है, बल्कि बच्चे के भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालता है और इससे पारिवारिक सद्भाव की नींव कमजोर होती है। इस जोड़े की शादी मार्च 1990 में हुई थी, जिससे उनका एक बेटा हुआ और पत्नी ने 2008 से साथ रहने से इनकार कर दिया। इसके चलते पति ने 2009 में तलाक के लिए अर्जी दी थी। सितंबर 2021 में निचली अदालत ने उस व्यक्ति को तलाक दे दिया, जिसके खिलाफ महिला ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

महिला का दाव- पति यौन संबंध बनाने को तैयार नहीं था
महिला ने अपनी याचिका में कहा कि उसने अपने पति से नाता नहीं तोड़ा, बल्कि तलाक की अर्जी दायर करने के बाद भी अपने बेटे के साथ ससुराल में ही रहती रही। उसने आगे कहा कि उसका पति यौन संबंध बनाने को तैयार नहीं था और उसके ससुराल वालों ने उसके साथ मारपीट की थी। वहीं, इसके महिला के पति ने अपनी याचिका में मौजूदा मुलाकात आदेशों के बावजूद अपने बेटे से संपर्क बनाए रखने की अपनी नाकाम कोशिशों का जिक्र किया। उसने दावा किया कि उसने चार-पांच बार अपने बच्चे से मिलने की कोशिश की, लेकिन बच्चे ने उससे बात करने से इनकार कर दिया। आखिरकार उसने यह मुलाकातें बंद कर दीं। पति ने आगे दावा किया कि तलाक की अर्जी दायर करने के बाद महिला ने उसके और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ कई आपराधिक शिकायतें दर्ज कराईं।

मनोवैज्ञानिक क्रूरता का एक गंभीर रूप
जस्टिस शंकर द्वारा लिखित फैसले में हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा, ''नाबालिग बच्चे को प्रतिवादी से जानबूझकर अलग-थलग करना मनोवैज्ञानिक क्रूरता का एक गंभीर रूप है। वैवाहिक विवाद में बच्चे को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से न केवल प्रभावित माता-पिता को चोट पहुंचती है, बल्कि बच्चे की भावनात्मक स्वास्थ्य भी नष्ट हो जाता है और पारिवारिक सौहार्द की जड़ पर आघात पहुंचता है।'' हाईकोर्ट ने अपने 29 पन्नों के फैसले में यह भी माना कि वैवाहिक यौन संबंध से लगातार वंचित रखना क्रूरता की पराकाष्ठा है। कोर्ट ने कहा, "यह सर्वविदित है कि यौन संबंध और वैवाहिक कर्तव्यों का निर्वहन शादी का आधार है, उनके लिए लगातार इनकार करना न केवल वैवाहिक जीवन के बिखराव को दर्शाता है, बल्कि क्रूरता का भी प्रतीक है जिसके लिए न्यायिक हस्तक्षेप जरूरी है।"

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button