बिहार चुनाव में NDA का मुस्लिम प्रतिनिधित्व सवालों के घेरे में, 243 सीटों में सिर्फ 4 मुस्लिम कैंडिडेट

पटना
एनडीए के सभी घटक दलों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. इस मामले में महागठबंधन पिछड़ गया. एनडीए में जेडीयू को छोड़ किसी भी घटक दल ने मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारे हैं. जेडीयू ने 17 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम समाज से सिर्फ 4 कैंडिडेट देकर एनडीए की लाज बचा ली है.
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए के सभी घटक दलों ने अपने हिस्से की सीटों पर उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं. जेडीयू ने बुधवार को 57 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी और गुरुवार को दूसरी सूची जारी कर बचे उम्मीदवारों के नाम भी घोषित कर दिए. एनडीए की दूसरी सहयोगी भाजपा ने भी अपने 101 उम्मीदवारों के नाम 3 किस्तों में जारी कर दिए हैं. एनडीए की तीसरी पार्टी हम (HAM) ने भी हिस्से में मिली 6 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम तय कर दिए हैं. चौथी सहयोगी चिराग पासवान की लोजपा-आर ने भी 14 उम्मीदवारों की एक सूची जारी की है. उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम ने भी नाम तय कर दिए हैं. चिराग पासवान को बंटवारे में 29 सीटें मिली हैं. एनडीए की कैंडिडेट लिस्ट में जेडीयू को छोड़ किसी ने मुस्लिम कैंडिडेटट नहीं दिए. जेडीयू ने सिर्फ 4 मुसलमानों को इस बार मौका दिया है. जेडीयू ने 2020 में 11 मुस्लिम कैंडिडेट दिए थे.
उम्मीदवारों के चयन में जातीय समीकरण
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि बिहार की सियासत में जातीय समीकरण की कितनी अहमियत होती है. इसी अहमियत को ध्यान में रख कर लालू यादव के नेतृत्व वाले आरजेडी ने वर्षों पहले मुस्लिम-यादव समीकरण बनाया था. नीतीश कुमार ने जब से लालू का साथ छोड़ा, तब से लेकर अब तक सभी जातियों को समान रूप से साधने का प्रयास किया है. यही वजह है 5 प्रतिशत से भी कम आबादी वाली कुर्मी जाति से आने वाले नीतीश ने अपना बड़ा जनाधार तैयार कर लिया है. हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने उम्मीदवारों के चयन में यह सावधानी बरती है.
जेडीयू की लिस्ट में 4 मुस्लिम कैंडिडेट
जेडीयू की सूची में एक बात खटकती है. इस बार सिर्फ 4 मुस्लिम कैंडिडेट सूची में हैं. जेडीयू ने अक्टूबर 2005 के चुनाव में 9 मुस्लिम कैंडिडेट दिए थे. 2010 में भी यह सिलसिला बरकरार रहा. तब 17 मुससलमानों को विधानसभा का टिकट जेडीयू से मिला था. 2015 में जेडीयू को इस बार की तरह ही 101 सीटें मिली थीं. फिर भी नीतीश ने 7 मुसलमानों को उम्मीदवार बनाया था. तब नीतीश आरजेडी के साथ चुनाव लड़े थे. बाद में वे भाजपा में लौट गए. नतीजा यह हुआ कि 2020 में जब उन्होंने 11 मुसलमानों को टिकट दिया तो उनकी जमात ने स्वजातीय या स्वधर्मी उम्मीदवारों का साथ नहीं दिया. जेडीयू के सारे मुस्लिम कैंडिडेट हार गए.
2015 तक मुसलमानों का मिला साथ
मुस्लिम-यादव के मजूबत समीकरण की वजह से आरजेडी के प्रति मुसलमानों का आकर्षण भले कभी अधिक रहा हो, लेकिन नीतीश कुमार के उदय के बाद और उनके द्वारा किए गए काम से खुश होकर मुसलमानों का बड़ा तबका जेडीयू के साथ आ गया था. मुसलमानों में पिछड़े तबके की पहचान कर नीतीश ने उनके विकास के लिए काम किए तो उनका झुकाव उनके प्रति स्वाभाविक था. आम मुसलमानों के हित में भी नीतीश ने कई उल्लेखनीय काम कर उनके दिलों में अपनी जगह बना ली थी. नीतीश ने भी मुसलमानों को सम्मान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसके बावजूद 2020 के चुनाव में मुसलमानों ने उनका साथ नहीं दिया. जेडीयू ने 11 मुस्लिम कैंडिडेट उतारे थे, लेकिन एक भी नहीं जीत पाया. बसपा के जमा खान अगर नीतीश के साथ नहीं आते तो विधानसभा में जेडीयू का कोई मुस्लिम विधायक ही नहीं होता.
इसके संकेत पहले से ही मिलने लगे थे
जेडीयू पर मुसलमानों का भरोसा नहीं रहा, यह संकेत तो स्पष्ट तौर पर 2020 में ही मिल गया था, जब उसके सारे मुस्लिम कैंडिडेट हार गए. 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद सांसद देवेश चंद्र ठाकुर और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने खुल कर कहना शुरू किया कि जेडीयू को मुसलमानों के वोट नहीं मिलते. यह अलग बात है कि नीतीश कुमार ने मुसलमानों के लिए सर्वाधिक और उल्लेखनीय काम किए हैं. मुसलमानों में नीतीश के प्रति नाराजगी की वजह शायद भाजपा की संगत रही है. भाजपा के साथ तो वे सर्वाधिक समय तक सरकार चलाते रहे हैं, लेकिन कई मौकों पर उन्होंने भाजपा की खुल कर मुखालफत भी की है. सांसद चुने जाने के बाद देवेश चंद्र ठाकुर ने गुस्से में यहां तक कह दिया कि उन्हें मुसलमानों ने वोट नहीं दिया, इसलिए वे उनका काम नहीं करेंगे. वक्फ कानून पर भाजपा के साथ जेडीयू का खड़ा होना भी मुसललमानों को नागवार लगा था. इसकी झलक उस दिन मिली, जब नीतीश ने रमजान के महीने में इफ्तार की पार्टी दी. मुस्लिम जमात के लोगों ने उसका बायकाट किया था. जेडीयू ने इस बार सिर्फ 4 मुसलमानों को ही मौका दिया है तो इसकी यही वजह समझ में आती है.