RO.No. 13047/ 78
राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

चीन के हमदर्द की मालदीव में जीत भारत के लिए क्यों है बड़ा झटका

नईदिल्ली

मालदीव में शनिवार को हुए राष्ट्रपति चुनाव में चीन समर्थक मोहम्मद मुइज्जू ने शानदार जीत हासिल की है. मुइज्जू ने मौजूदा राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह को शिकस्त दी है. मुइज्जू को भारत समर्थक के रूप में देखा जाता रहा है. सोलिह की सत्ता में आने के बाद से भारत और मालदीव के बीच रिश्ते काफी मजबूत हुए हैं. मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह 17 नवंबर तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में काम करेंगे.

वहीं, मोहम्मद मुइज्जू और उनकी पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस को चीन समर्थक के रूप में देखा जाता है. इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि मोहम्मद मुइज्जू और उनकी पार्टी ने मोहम्मद सोलिह को सत्ता से हटाने के लिए चुनाव में 'इंडिया-आउट' कैंपेन का नारा दिया था. मुइज्जू का आरोप है कि सोलिह के कार्यकाल के दौरान भारत ने मालदीव की संप्रभुता और स्वतंत्रता में हस्तक्षेप किया है.

राष्ट्रपति चुनाव में निवर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को 54 प्रतिशत से अधिक वोट मिले हैं. वहीं, मौजूदा राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह को 46 प्रतिशत वोट मिले हैं. मुइज्जू ने लगभग 18 हजार वोटों से जीत दर्ज की है.

इससे पहले 9 सितंबर को हुए चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिले थे, जिसके बाद 30 सितंबर को दोबारा मतदान हुआ. दरअसल, मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव भी फ्रांस के चुनाव प्रणाली के समान ही है. जहां विजेता को 50 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करना जरूरी होता है. यदि पहले राउंड में कोई भी उम्मीदवार 50 प्रतिशत से ज्यादा मत नहीं हासिल कर पाता है तो दूसरे राउंड में शीर्ष दो उम्मीदवारों के बीच चुनाव होता है.

चुनाव के नतीजे भारत के लिए अहम

हिंद महासागर में स्थित सौ से अधिक द्वीपों वाला देश मालदीव रणनीतिक रूप से भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण देश है. ऐसे में रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस चुनाव के नतीजे पर भारत के साथ-साथ चीन की भी निगाहें टिकीं हुई थी. यहां तक कि इस राष्ट्रपति चुनाव को एक तरह से मालदीव की जनता के जनमत संग्रह के रूप में देखा जा रहा था कि मालदीव को भारत के साथ घनिष्ठ रिश्ते बनाए रखना है या चीन के साथ.

मोहम्मद मुइज्जू की जीत के बाद विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और मालदीव के बीच रिश्ते एक बार फिर खराब हो सकते हैं. क्योंकि मोहम्मद मुइज्जू और उनकी पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस को चीन समर्थक के रूप में देखा जाता है. मोहम्मद सोलिह से पहले पीपुल्स नेशनल कांग्रेस पार्टी के अबदुल्ला यामीन मालदीव के राष्ट्रपति थे. उस वक्त भी भारत और मालदीव के रिश्ते अपने निम्नतम स्तर पर थे.

मोहम्मद सोलिह ने हार स्वीकार की

राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने के बाद मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह ने हार स्वीकार कर ली है. मोहम्मद सोलिह ने ट्वीट करते हुए लिखा है, " राष्ट्रपति चुनाव के विजेता मोहम्मद मुइज्जू को बधाई. इस चुनाव में मालदीव की जनता द्वारा दिखाए गए बेहतरीन लोकतांत्रिक उदाहरण के लिए उनका धन्यवाद. हमारे साथ मिलकर काम करने वाले Maldivian Democratic Party और Adhaalath Party के सदस्यों और मेरे लिए वोट करने वाले सभी लोगों को धन्यवाद.

मोहम्मद सोलिह की हार भारत के लिए एक तरह से झटका

मालदीव के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे को भारत के लिए एक तरह से झटके के तौर पर देखा जा रहा है. चुनाव के इस परिणाम ने मालदीव और भारत के बीच के कूटनीतिक रिश्ते को एक फिर वहीं पहुंचा दिया है, जहां पांच साल पहले दोनों देशों ने शुरुआत की थी. मालदीव के निवर्तमान राष्ट्रपति मुइज्जू ने पिछले साल चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के अधिकारियों के साथ एक बैठक में कहा था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में वापसी करती है तो दोनों देशों (चीन-मालदीव) के बीच मजबूत संबंधों में एक और अध्याय जुड़ेगा.

मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को मोहम्मद मुइज्जू के राजनीतिक गुरु के रूप में देखा जाता है. अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल के दौरान मालदीव ने निर्माण परियोजनाओं के लिए  भारत के अनुरोध को ठुकराते हुए चीन से भारी-भरकम उधार लिया था. यामीन के कार्यकाल के दौरान मालदीव चीनी कर्ज के जाल में पूरी तरह से फंस चुका था. जिसके बाद यामीन के खिलाफ बढ़ते असंतोष के कारण सोलिह ने 2018 के राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की थी. 2018 के चुनाव में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने गयूम के सौतेले भाई अब्दुल्ला यामीन को हराया था.  

यामीन के कार्यकाल के दौरान मालदीव जिस तरह से चीन के नजदीक हो रहा था, उससे भारत चिंतित था. क्योंकि मालदीव हिंद महासागर के मध्य में दुनिया के सबसे व्यस्त पूर्व-पश्चिम शिपिंग लेन पर स्थित है. मालीदव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन फिलहाल जेल में हैं. अब्दुल्ला यामीन को भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में दोषी पाए जाने पर 11 साल जेल की सजा सुनाई गई है. हालांकि, मुइज्जू ने यामीन को जेल से रिहा करने की शपथ ली है.

मालदीव और भारत के रिश्ते

मालदीव 1965 में ब्रिटेन से आजाद हुआ. मालदीव की आजादी के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्ते मिले-जुले रहे हैं.1968 से 2008 तक मालदीव में कार्यकारी राष्ट्रपति का चुनाव होता था. इब्राहिम नसीह 1968 से 1978 तक मालदीव के पहले कार्यकारी राष्ट्रपति रहे.

1978 में मौमून अब्दूल गयूम मालदीव के अगले कार्यवाहक राष्ट्रपति बने. अब्दूल गयूम के कार्यकाल के दौरान ही भारत ने मालदीव में 'ऑपरेशन कैक्टस' चलाया था. जिसका मकसद अब्दुल गयूम के खिलाफ तख्तापलट की कोशिशों को निरस्त करना था. गयूम 30 साल तक मालदीव के राष्ट्रपति रहे.भारत ने तीन दशकों तक अब्दुल गयूम के साथ मिलकर काम किया. इस दौरान दोनों देशों के बीच रिश्ते मजबूत हुए.

2008 में अब्दूल गयूम के कार्यकाल के दौरान ही मालदीव नए संविधान के तहत बहुदलीय पार्टी सिस्टम को अमल में लाया. जिसके तहत पांच साल के लिए राष्ट्रपति का चुनाव होना शुरू हुआ. 2008 के चुनाव में अब्दुल गयूम की हार हुई और मोहम्मद नशीद मालदीव के नए राष्ट्रपति बने. 2008 के बाद से मालदीव में कोई भी राष्ट्रपति दोबारा नहीं चुना गया है.

2008 के बाद मालदीव का झुकाव चीन की ओर

2008 में मोहम्मद नशीद जब मालदीव के राष्ट्रपति बने तो कूटनीतिक रिश्ते को और मजबूत करने के लिए भारत ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को नशीद के शपथग्रहण में भेजा था. मोहम्मद नशीद के कार्यकाल की शुरुआत में भारत और मालदीव के रिश्ते ठीक रहे, लेकिन धीरे-धीरे मालदीव की नजदीकियां चीन से बढ़ने लगीं.

भारत को मालदीव से झटका तब लगा जब नशीद सरकार ने 2012 में मालदीव हवाई अड्डे के लिए भारत के साथ हुए जीएमआर अनुबंध को रद्द कर दिया. 2013 में मालदीव की सत्ता में अब्दुल्ला यामीन के आने के बाद भारत और मालदीव के रिश्ते और तल्ख होते चले गए. यामीन के कार्यकाल के दौरान ही मालदीव ने चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट में शामिल हुआ. जबकि भारत हमेशा से चीन के इस प्रोजेक्ट का पुरजोर विरोध करता रहा है.

यामीन के कार्यकाल के दौरान मालदीव सरकार पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगा. ऐसे में भारत और पश्चिमी देशों ने मालदीव को लोन देने से इनकार कर दिया. जिसके बाद यामीन सरकार ने चीन की ओर रुख किया. चीन ने बिना किसी शर्त के मालदीव को लोन दिया. यामीन के कार्यकाल के दौरान मालदीव में चीन के फुटप्रिंट का विस्तार भारत के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा था.  

2018 के राष्ट्रपति के चुनाव में मोहम्मद सोलिह जब मालदीव के राष्ट्रपति बने तो मालदीव से रिश्ते को बेहतर करने के लिए सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद गए थे. इब्राहम सोलिह के कार्यकाल के दौरान दोनों के बीच रिश्ते मजबूत भी हुए. भारत विभिन्न मौकों पर मालदीव तक अपनी पहुंच सुनिश्चित की. टीका से लेकर बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए लोन के रूप में भारत ने मालदीव की मदद की.

मुइज्जू की जीत भारत के लिए कितना बड़ा झटका

मुइज्जू को मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के प्रॉक्सी (उत्तराधिकारी) के रूप में देखा जा रहा है. चुनाव प्रचार के दौरान उनके बयानों ने भारत की चिंता को और बढ़ा दिया है. मुइज्जू ने कहा था कि अगर वह चुनाव जीतते हैं तो विदेशी देशों और कंपनियों के साथ उन सभी समझौते को रद्द कर देंगे जो मालदीव और मालदीव के लोगों के लिए फायदेमंद नहीं हैं. मुइज्जू का साफ इशारा भारत और भारतीय कंपनियों की ओर था.

इसका अलावा मुइज्जू ने कहा था कि अगर मैं राष्ट्रपति बनता हूं तो पहले दिन से ही मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी शुरू हो जाएगी. साथ ही कई मौकों पर मुइज्जू ने मालदीव में चीन के प्रोजेक्ट के लिए यामीन की सराहना भी की है. मुइज्जू का आरोप है कि सोलिह के कार्यकाल के दौरान भारत ने मालदीव की संप्रभुता और स्वतंत्रता में हस्तक्षेप किया है. जबकि चीन ने ऐसा नहीं किया है.

भारत पर क्या होगा असर?

कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मुइज्जू के राष्ट्रपति चुनाव जीतने से मालदीव में भारत के हितों को खतरा हो सकता है. मुइज्जू की नीति मोहम्मद सोहिल की भारत समर्थक नीति के विपरीत चीन समर्थक हो सकता है. इसका मतलब है कि मालदीव चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को प्रभावी रूप से लागू कर सकता है.

इसके अलावा मालदीव सरकार भारत से अपने सैनिकों को वापस बुलाने के लिए कह सकती है. ऐसे में मालदीव की मदद से चीन एक बार फिर हिंद महासागर में बड़ी भूमिका में आ सकता है. जो भारत के लिए चिंता का विषय है. क्योंकि भारत एक और देश को हिंद महासागर में श्रीलंका जैसी स्थिति में नहीं देखना चाहता.

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

RO.No. 13047/ 78

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button