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मतदान आज, राजस्थान में दलित-आदिवासी वोटर इस बार किस पार्टी पर मेहरबान होंगे?

जयपुर
राजस्थान में सत्ता का संग्राम परवान पर है. इसकी परीक्षा की घड़ी आ गई है. आज राज्य के 199 विधानसभा सीटों पर मतदान होने हैं, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि राजस्थान में दलित और आदिवासी वोटर सत्ता विरोधी लहर का संकेत है. मतलब दलित और आदिवासी वोटर जिस पार्टी की तरफ झुक जाए, तो उसी पार्टी को सत्ता मिलना तय माना जाता है. राजस्थान में 200 विधानसभा की सीटें हैं, जिसमें दलित और आदिवासी की 59 सीटें रिजर्व(आरक्षित) हैं, जिसमें 34 दलित और 25 आदिवासी सीटें हैं. इनकी आबादी करीब 31 फीसदी है, जिसमें दलित की आबादी 17.85 फीसदी और आदिवासी की आबादी 13.50 फीसदी है.
 
दलित और आदिवासी की 59 सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी की पैनी नजर है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव के दौरान बिरसा मुंडा की जयंती पर आदिवासियों के कल्याण के लिए 24,000 करोड़ रुपये की योजना शुरू की है और दलित और आदिवासी को ये संदेश बराबर देते हैं कि पहली बार देश में दलित रामनाथ कोविंद और आदिवासी दौपद्री मुर्मु को राष्‍ट्रपति उनकी सरकार ने ही बनाने का काम किया है. मोदी सरकार ने आदिवासियों के भगवान कहे जाने वाले बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस मनाने का फैसला किया है.   

वहीं, अशोक गहलोत ने अपने मंत्रिमंडल में दलित-आदिवासियों को प्राथमिकता दी है. गहलोत सरकार ने अपने 5 साल के कार्यकाल में एससी आयोग का गठन किया है और साथ ही साथ दलितों के कल्याण के लिए अलग से बजट रखने का फैसला लिया है. यही नहीं सीएम गहलोत ने दलितों को लुभाने के लिए पहली बार दलित आईएएस अधिकारी निरंजन आर्य को राज्य का मुख्य सचिव बनाकर दलितों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश की है.

लेकिन गौर करने की बात है, दलित और आदिवासी की बात सारी पार्टियां करती हैं, लेकिन 31 फीसदी आबादी वाले दलित और आदिवासी समुदाय से एक बार ही दलित नेता जगन्नाथ पहाड़िया राज्य के मुख्यमंत्री बने, जबकि इनकी वोट पर सबकी नजर रहती है. इनके वोटर शांत होते हैं, लेकिन मतदान करने में आगे होते हैं. राज्य में दलितों की 34 सीटें आरक्षित हैं और कांग्रेस और बीजेपी ने इतने ही उम्मीवदार उतारे हैं, जबकि 25 आदिवासी सीट आरक्षित है, लेकिन कांग्रेस ने 33 और बीजेपी ने 30 उम्मीदवार उतारे हैं, इसकी वजह है आदिवासी में मीणा जाति का वर्चस्व होना.   

राजस्थान में ये देखने को मिला है कि जिस पार्टी को सत्ता मिली है, उसमें दलित और आदिवासी वोटरों का अहम योगदान रहा है. 2018 में कांग्रेस को सत्ता मिली थी, जिसमें रिजर्व दलित और आदिवासी की 59 सीटों में से कांग्रेस को 31 सीटें मिली थी, जबकि बीजेपी को सिर्फ 21 सीटें. दलित की 34 सीटों में से कांग्रेस को 19 और बीजेपी को 12 सीटें मिली थी, जबकि अन्य पार्टी को 3 सीटें मिली थी.  आदिवासी की 25 सीटों में से कांग्रेस को 12 और बीजेपी को 9 और अन्य को 4 सीटें मिली थीं, जिसमें भारतीय ट्राइवल पार्टी को 2 सीटें मिली थीं. 2018 में भारतीय ट्राइवल पार्टी ने 11 उम्मीदवार उतारे थे, जबकि इसबार 20 उम्मीदवार उतारे हैं. 2018 में कांग्रेस बहुमत से एक सीट पीछे छूट गई थी. कांटे की टक्कर में इस बार भारतीय ट्राइवल पार्टी कांग्रेस और बीजेपी के लिए सिरदर्द बनी हुई है. 2018 में भारतीय ट्राइवल पार्टी को महज .72 फीसदी ही वोट मिले थे, लेकिन पार्टी 2 सीट पर जीती थी, लेकिन 9 सीटों पर खेल खराब की थी. 

Dinesh Purwar

Editor, Pramodan News

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