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टेंडर की शर्तों को दरकिनार कर विभाग की 75 करोड़ रुपए की खरीदी

भोपाल

प्रदेश का उच्च शिक्षा विभाग इन दिनों बेहतर शिक्षा देने और बेहतर प्रबंधन के बजाय विद्यार्थियों के लिए आवश्यक चीजों की खरीदी में किए जा रहे गड़बड़झाले के लिए ज्यादा चर्चा में है। करीब 75 करोड़ रुपए की ऐसी खरीदी की जा रही है जिसमें टेंडर की शर्तों को दरकिनार किया गया है। यह कारनामा करने वाले कोई छोटे-मोटे क्लर्क या अधिकारी नहीं बल्कि वे वरिष्ठ अफसर हैं जिनके ऊपर विभाग का पूरा जिम्मा है। जिनकी ड्यूटी है कि वे देखें कि विभाग में सबकुछ ठीक चल रहा है, लेकिन वे ही इस काम में संलिप्त हैं।

उच्च शिक्षा विभाग द्वारा नवीन कॉलेज और पुराने कॉलेजों में बेहतर फर्नीचर, लैब उपकरण, वर्चुअल क्लासेस एवं थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन के नाम पर करीब 75 करोड़ रुपए के टेंडर जारी किए गए। इनमें से कुछ टेंडर जेम पोर्टल के माध्यम से तो कुछ एमपी टेंडर पोर्टल के माध्यम से जारी किए गए। अपनों को उपकृत करने और इसके ऐवज में मलाई खाने के लिए वरिष्ठ अफसरों ने टेंडर की शर्तों का पालन नहीं किया और जो लोग अयोग्य हो गए थे, उन्हें काम दे दिया। उच्च शिक्षा विभाग में खरीदी का अधिकार संबंधित कॉलेज को दिया गया है, लेकिन प्राचार्यों पर दबाव डालकर राज्य स्तर से खरीदी करने के सहमति पत्र प्राप्त किए जा रहे हैं। ऐसे कई मामले हैं।

बिना फीस टेंडर अलॉट
बॉटनी के ग्रुप 4,5 और 6 के उपकरणों की खरीदी के लिए जेम पोर्टल पर टेंडर किया गया। कुल 20 करोड़ रुपए के उपकरण खरीदे जाने थे। इसमें एक ऐसी कंपनी को टेंडर अलॉट किया गया जिसने टेंडर की शर्तों के मुताबिक टेंडर फीस ही जमा नहीं की थी। यह कंपनी इंदौर की है। इसने कल उपकरण का डेमो भी दिया है, जबकि यह कंपनी अपात्र होना थी, जिसे मंत्रालय में बैठे उच्च शिक्षा विभाग के एक बड़े अधिकारी ने समस्त नियमों को दरकिनार कर 20 करोड़ रुपए का काम दे दिया। कुल 5 कंपनियों ने टेंडर भरा था।

डेमो नहीं दिया फिर भी क्वॉलिफाई
कॉलेजों में वर्चुअल क्लास के लिए 30 करोड़ रुपए का टेंडर एमपी टेंडर पोर्टल पर लगाया गया। इस टेंडर की प्रमुख शर्तों में से एक थी कि जो भी कंपनी इस टेंडर में पार्टिसिपेट करेगी उसे अपने उपकरणों का वन टाइम डेमो देना था। यह बात निविदा की शर्त 28 तथा रूसा पत्र क्रमांक 1238,39 दिनांक 31/5/2023 में साफ लिखी है। जिस दिन विभाग ने निविदाकार कंपनियों का डेमो रखा उस दिन तीन कंपनियां ऐसी थीं जिसके नुमाइंदे अपने साथ कोई उपकरण नहीं लाए थे बावजूद इसके इन तीन कंपनियों को उच्च शिक्षा विभाग के संचालनालय पर बैठे एक वरिष्ठ अधिकारी ने नियमों को दरकिनार करते हुए क्वॉलिफाई कर दिया।

भंडारगृह नियम का उल्लंघन
विभिन्न कार्यों के थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन के काम के लिए भी एमपी टेंडर पोर्टल पर निविदाएं आमंत्रित की गई। जिसमें वित्तीय प्रस्ताव की मूल शीट के अतिरिक्त बाद में अलग से एक निविदाकार को लाभ देने के लिए प्रपत्र लगाया गया। जिसके कारण उस संस्था ने अलग से वित्तीय प्रस्ताव डाला और उसको उच्च शिक्षा विभाग के संचालनालय पर बैठे एक वरिष्ठ अधिकारी ने एल-1 घोषित कर दिया। इसके अलावा इस निविदा में नियमों के मुताबिक 21 दिनों का समय दिया चाहिए जो केवल 7 दिन का दिया गया, यह मप्र भंडारगृह नियम का उल्लंघन है। इसके साथ ही एनआईटी और बिड डाक्यूमेंट के टर्म एंड कंडीशन में बड़ा अंतर है। इस काम के लिए को-आॅपरेटिव सोसायटी के तहत रजिस्टर्ड एजेंसी को लाभ देने के लिए परिवर्तन किया गया। जबकि जेम और एलयूएन में शासकीय अथवा क्वॉलिटी काउंसिल आॅफ इंडिया से मान्यता प्राप्त संस्था ही इंस्पेक्शन कर सकती है।

Dinesh Purwar

Editor, Pramodan News

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