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सुप्रीम कोर्ट ने जांच प्रभावित करने के आरोपी एक पुलिस अधिकारी को जमानत देने से इनकार कर दिया

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने जांच प्रभावित करने के आरोपी एक पुलिस अधिकारी को जमानत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहाकि अगर पुलिस अधिकारी को जमानत दी जाती है तो इससे समाज में गलत संदेश जाएगा। यह आम जनता के हित में नहीं होगा। कोर्ट ने कहाकि एक पुलिस अधिकारी का काम निष्पक्ष जांच करके दोषियों को दंड दिलाना है। कोर्ट ने यह भी कहाकि पुलिस अधिकारी अपनी प्राथमिक ड्यूटी निभाने में भी नाकाम रहा। जस्टिस विक्रम नाथ और संजय कुमार की बेंच ने यह फैसला झारखंड के एक मामले को लेकर सुनाया। बेंच ने यह भी कहाकि भले ही अधिकारी सस्पेंड है, लेकिन अपने प्रभाव से जांच और गवाहों को प्रभावित कर सकता है।

झारखंड का मामला
झारखंड हाई कोर्ट ने 6 जुलाई, 2022 को धनवर पुलिस थाना प्रभारी संदीप कुमार को अग्रिम जमानत दे दी थी। संदीप कुमार के ऊपर आरोप है कि उन्होंने जांच अधिकारी होते हुए भी एक अन्य पुलिस अधिकारी के खिलाफ धोखाधड़ी के मामले में दाखिल एफआईआर में हेरफेर की थी। ऐसा करके उन्होंने आरोपी पुलिस अधिकारी को बचाने की कोशिश की थी। उक्त पुलिस अधिकारी का नाम रंजीत कुमार सॉ है और उसके ऊपर धोखाधड़ी और जालसाजी की एफआईआर दर्ज कराई गई थी। सॉ की गिरफ्तारी के बाद जांच अधिकारी संदीप ने एफआईआर में उसके पिता का नाम बदलकर बालगोविंद सॉ कर दिया था। इसके बाद उन्होंने रंजीत कुमार सॉ नाम के एक अन्य शख्स को गिरफ्तार कर लिया था, जिसके पिता का नाम बालगोविंद था। इस तरह का गंभीर आरोप होने के चलते ट्रायल कोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था। लेकिन हाई कोर्ट ने कहाकि हाई कोर्ट ने उदारवादी रवैया अपनाते हुए उन्हें जमानत दे दी थी।

समाज में जाएगा गलत संदेश
हालांकि शीर्ष अदालत ने छह मार्च को सुनाए आने आदेश में हाई कोर्ट के आदेश को दरकिनार कर दिया। कोर्ट ने एक पुलिस जांच अधिकारी को राहत देने से इनकार कर दिया, जिसके ऊपर दोषी को सजा दिलाने की जिम्मेदारी होती है। गौरतलब है कि आरोपी पुलिस अधिकारी मामले में सस्पेंड भी चल रहा है। फैसला लिखते हुए जस्टिस कुमार ने कहाकि एक जांच अधिकारी को इस तरह की राहत देने से समाज में गलत संदेश जाएगा। यह आम लोगों के हित में नहीं होगा। अप्रैल 2022 में अग्रिम जमानत खारिज करते हुए लोअर कोर्ट ने कहा था कि एफआईआर में बदलाव पर दस्तखत नहीं किए गए थे। वहीं, शीर्ष अदालत ने कहाकि इस स्टेज पर यह नहीं कहा जा सकता कि एफआईआर में बदलाव किसने किए। लेकिन एक जांच अधिकारी की यह जिम्मेदारी थी कि वह एफआईआर की पवित्रता बनाए रखता।

शिकायतकर्ता ने बताई थी हकीकत
गौरतलब है कि ट्रायल कोर्ट ने मामले में धनवर पुलिस थाने के सीसीटीवी फुटेज पर भरोसा किया था। इसमें नजर आ रहा था कि वास्तविक दोषी रंजीत कुमार सॉ पुत्र लखन सॉ पुलिस थाने में आया था। उसने जांच में हेरफेर करने के आरोपी पुलिस अफसर से कई बार भेंट भी की थी। वहीं, रात के दस बजे बालगोविंद का बेटा रंजीत थाने में आता है और कस्टडी में उसे बदल दिया जाता है। अगले दिन इस व्यक्ति की तस्वीर अखबारों में छपी थी, जिसे देखकर शिकायतकर्ता थाने पहुंचा था। उसने इंस्पेक्टर और डिप्टी कमिश्नर को बताया भी था कि जिस रंजीत की फोटो अखबार में छपी है वह 19 नवंबर 2021 को गिरफ्तार किया गया शख्स नहीं, बल्कि कोई और है।

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

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