स्वामीनाथन ने वैज्ञानिक ज्ञान और उसके व्यावहारिक कार्यान्वयन के बीच के अंतर को कम किया: प्रधानमंत्री मोदी
नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हरित क्रांति के जनक एम एस स्वामीनाथन को सच्चा 'किसान वैज्ञानिक'' करार दिया। स्वामीनाथन का हाल ही में निधन हुआ है।
प्रधानमंत्री ने स्वामीनाथन को यह दर्जा उनके कार्यों का प्रयोगशालाओं के बाहर खेतों में दिखाई दिए असर के कारण दिया। मोदी ने महान वैज्ञानिक को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन ने वैज्ञानिक ज्ञान और उसे व्यावहारिक तौर पर लागू करने के बीच के अंतर को कम किया।
मोदी ने कहा, ''बहुत से लोग उन्हें ''कृषि वैज्ञानिक'' कहते थे, लेकिन मेरा हमेशा से यह मानना था कि वह इससे कहीं अधिक थे। वह सच्चे 'कृषि वैज्ञानिक' थे। उनके दिल में किसान बसता था।''
उन्होंने स्वामीनाथन को श्रद्धांजलि देने के लिए प्रसिद्ध तमिल पुस्तक 'कुराल' का जिक्र करते हुए कहा, ''उसमें (पुस्तक में) लिखा है 'जिन लोगों ने योजना बनाई है, यदि उनमें प्रतिबद्धता है, तो वे उस चीज को हासिल कर लेंगे, जिसका उन्होंने लक्ष्य निर्धारित किया है।' यहां एक ऐसा व्यक्ति है, जिसने अपने जीवन में ही तय कर लिया था कि वह कृषि क्षेत्र को मजबूत करना चाहता है और किसानों की सेवा करना चाहता है।''
मोदी ने कहा कि किताब में किसानों को दुनिया को एक सूत्र में बांधने वाली धुरी के रूप में वर्णित किया गया है, क्योंकि किसान ही हैं, जो सभी की जरूरतों को पूरा करते हैं और स्वामीनाथन इस सिद्धांत को बहुत अच्छी तरह से समझते थे।
प्रधानमंत्री ने स्वामीनाथन के दृष्टिकोण की सराहना करते हुए कहा कि दुनिया आज बाजरे को उत्कृष्ट खाद्य पदार्थ के रूप में वर्णित कर रही है, लेकिन उन्होंने (स्वामीनाथन ने) 1990 के दशक से बाजरे से जुड़े खाद्य पदार्थों को प्रोत्साहित किया।
उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन ने टिकाऊ खेती की आवश्यकता और मानव उन्नति तथा पारिस्थितिकी स्थिरता के बीच संतुलन पर भी जोर दिया।
प्रधानमंत्री ने 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद स्वामीनाथन के साथ अपने व्यक्तिगत संबंध को भी याद किया। उस वक्त राज्य अपनी कृषि क्षमता के लिए नहीं जाना जाता था। सूखे, चक्रवात और भूकंप ने उसके विकास को प्रभावित किया था।
मोदी ने कहा कि स्वामीनाथन ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड जैसी सरकारी पहल की सराहना की थी।
उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन को अमेरिका में संकाय पद की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया, क्योंकि वह भारत में और भारत के लिए काम करना चाहते थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसे वक्त में जब देश ने भोजन की कमी जैसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना किया, तब स्वामीनाथन ने देश को आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास का मार्ग दिखाया।
उन्होंने कहा कि 1960 के दशक की शुरुआत में भारत पर अकाल का संकट मंडरा रहा था, तभी स्वामीनाथन की दृढ़ प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता ने कृषि समृद्धि के एक नये युग की शुरुआत की।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कृषि और गेहूं की खेती सहित अन्य विशिष्ट क्षेत्रों में स्वामीनाथन के काम से गेहूं उत्पादन में बेतहाशा वृद्धि हुई और इसने भारत को भोजन की कमी वाले देश से आत्मनिर्भर राष्ट्र में तब्दील कर दिया, जिसके चलते उन्हें 'भारतीय हरित क्रांति के जनक' की उपाधि दी गई।
प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक और भारत में हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले स्वामीनाथन (98) का उम्र संबंधी जटिलताओं के कारण 28 सितंबर को निधन हो गया था।