जाने कब है नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि? दूर कर लें तिथियों का कंफ्यूजन
महाशक्ति के उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्र इस बार आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात, 15 अक्टूबर से शुरू हुआ है जो 23 अक्टूबर, महानवमी तक चलेगा. इस बार नवरात्र पूरे नौ दिनों का है. 23 अक्टूबर को नवमी का होम आदि और चंडा देवी की पूजा करना चाहिए. वहीं, इस बार 23 अक्टूबर को ही दशमी तिथि भी लग जाएगी. नवरात्र व्रत की पारन उदयाकालिक दशमी में अर्थात, 24 अक्टूबर को प्रात: में होगा. 24 अक्टूबर को ही देवी की पूजन प्रतिमाओं का विसर्जन भी होगा.
माता का आगमन और गमन
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्वेदी ने बताया कि इस बार माता का आगमन हाथी पर हुआ है. जिसका फल, सुवृष्टि या अधिक वर्षा है. तो वहीं गमन मुर्गा पर हो रहा है जिसका फल आम जनमानस में व्याकुलता, व्यग्रता आदि है. सब मिलाकर माता के आगमन का फल शुभ तथा गमन अशुभ है.
कब है अष्टमी और नवमी
पंडित ऋषि द्वेदी ने आगे बताया कि इस वर्ष महाष्टमी व्रत 22 अक्टूबर को, महाअष्टमी व्रत का पारन 23 अक्टूबर को सुबह किया जाएगा. वहीं सम्पूर्ण नवरात्र व्रत की पारन 24 अक्टूबर को सुबह किया जाएगा.
नौ दुर्गा दर्शन
तारीख तिथि दर्शन
15 अक्टूबर रात्रि 11:52 तक प्रतिपदा शैलपुत्री देवी
16 अक्टूबर 16/17 की मध्यरात्रि के बाद रात्रि 12:19 मिनट तक द्वितीया ब्रह्मचारिणी देवी
17 अक्टूबर 17/18 की मध्यरात्रि के बाद रात्रि 12:16 मिनट तक तृतीया चंद्रघंटा देवी
18 अक्टूबर रात्रि 11:42 मिनट तक चतुर्थी कूष्मांडा देवी
19 अक्टूबर रात्रि 10:40 मिनट तक पंचमी स्कंदमाता
20 अक्टूबर रात्रि 09:23 मिनट तक षष्ठी कात्यायनी देवी
21 अक्टूबर रात्रि 07:27 मिनट तक सप्तमी कालरात्रि देवी
22 अक्टूबर सायं 05:25 मिनट तक अष्टमी महागौरी दर्शन
23 अक्टूबर दिन में 03:20 मिनट तक महानवमी, उसके बाद सिद्धिदात्री देवी, नवरात्र हवन, दिन में 03:20 मिनट के बाद विजयादशमी लग जायेगी.
24 अक्टूबर सायंकाल मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन.
सूर्य ग्रहण के बाद नवरात्रि की शुरूआत होने के सवाल पर पंडित ऋषि द्वेदी ने बताया कि धर्म शास्त्र के अनुसार ग्रहण जहां दिखता है वहीं उसका प्रभाव रहता है. 14 अक्टूबर का ग्रहण भारत में दृश्य नहीं हैं.
शारदीय नवरात्र का महात्म्य
शारदीय नवरात्र का महात्म्य सतयुग से चला आ रहा है. मारकण्डेय पुराण में जो देवी का महात्म्य दुर्गा सप्तशती के द्वारा प्रकट किया गया है. वहां पर वर्णित है कि शुंभ-निशुंभ और महिषासुर तामसिक वृत्ति वाले असुरों के जन्म होने से देवगण दुखी हो गये. सभी ने मिलकर चित्त शक्ति से महामाया की स्तुति की. तब देवी ने वरदान दिया और देवताओं से कहा, 'डरो मत, मैं अचिर काल में प्रकट होकर अतुल्य पराक्रमी असुरों का संहार करूंगी और तुम्हारे मैं दुख को दूर करूंगी. मेरी प्रसन्नता के लिए तुम लोगों को आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से घट स्थापन पूर्वक नवमी तक मेरी आराधना करनी चाहिए. इसी आधार पर यह देवी नवरात्र का महोत्सव अनादि काल से चला आ रहा है. चूंकि यह व्रत नवरात्रि तक होता है, इसलिए इस व्रत का नाम नवरात्र पड़ा.
नवरात्र पूजन का संकल्प
पं. ऋषि द्वेदी ने बताया कि तैलाभ्यांग, स्नानादि कर मन में संकल्प लेना चाहिए. संकल्प में 'तिथि, वार, नक्षत्र, गोत्र, नाम इत्यादि लेकर माता दुर्गा के प्रसन्नार्थ, पित्यर्थ, प्रसादस्वरूप, दीर्घायु, विपुलधन, पुत्र-पौत्र, स्थिर लक्ष्मी, कीर्ति लाभ, शत्रु पराजय, सभी तरह के सिद्धर्थ, शारदीय नवरात्र में कलश स्थापन, दुर्गा पूजा, कुंवारी पूजन करेंगे या करूंगी." इस प्रकार संकल्प करना चाहिए. इसके उपरांत गणपति पूजन, स्वस्तिवाचन, नांदीश्राद्ध, मातृका पूजन इत्यादि करना चाहिए. तदुपरांत मां दुर्गा का पूजन षोडशोपचार या पंचोपचार करना चाहिए.