RO.No. 13047/ 78
जिलेवार ख़बरें

CG में शाह के मंच पर दिखा वो शख्स जो बदल सकता है 12 प्रतिशत वोट का गणित

रायपुर

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. सात नवंबर को पहले चरण में जिन 20 सीटों के लिए वोट डाले जाने हैं, उन सीटों से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस के साथ अलग-अलग राजनीतिक दलों के उम्मीदवार, निर्दलीय नामांकन कर रहे हैं. बीजेपी की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ने भी सोमवार को राजनांदगांव विधानसभा सीट से अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है.

डॉक्टर रमन के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह भी पहुंचे. नामांकन के बाद अमित शाह ने जनसभा को भी संबोधित किया, छत्तीसगढ़ सरकार पर जमकर हमला बोला. उन्होंने भ्रष्टाचार को लेकर भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार को जमकर घेरा और कहा कि छत्तीसगढ़ के भ्रष्टाचार के चर्चे दिल्ली तक हैं. मुख्यमंत्री के कार्यालय में काम करने वाले अधिकारी पकड़े जा रहे हैं.

अमित शाह ने भ्रष्टाचार को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार पर निशाना साधा लेकिन एक बात और थी जिसे लेकर अब चर्चे शुरू हो गए हैं. अमित शाह का ये कार्यक्रम था तो राजनांदगांव में लेकिन मंच पर शाजापुर के बीजेपी उम्मीदवार ईश्वर साहू भी नजर आए. ईश्वर साहू का शाह के मंच पर होना किस बात का संकेत है? इसके सियासी मायने क्या हैं? ये सवाल छत्तीसगढ़ के सियासी गलियारे में तेजी से तैर रहा है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ईश्वर कोई बड़ा राजनीतिक नाम नहीं हैं.

ईश्वर साहू को शाह के मंच पर जगह देना बीजेपी की एक तीर से तीन शिकार करने की रणनीति मानी जा रही है. एक ईश्वर जिस साहू समाज से आते हैं वह छत्तीसगढ़ की सबसे प्रभावी ओबीसी जातियों में से एक है. दूसरा, ईश्वर साहू का न तो कोई राजनीतिक बैकग्राउंड है और ना ही वे कभी राजनीति में सक्रिय ही रहे हैं. वे जातिगत समीकरण के साथ ही जातिगत जनगणना के दांव की काट के लिए गरीब कार्ड के सांचे में भी फिट बैठते हैं.

ईश्वर साहू बिरनपुर में सांप्रदायिक झड़प के दौरान जान गंवाने वाले भुवनेश्वर साहू के पिता हैं. इसी साल 6 अप्रैल को बेमेतरा जिले के बिरनपुर गांव में सांप्रदायिक झड़प की घटना में भुवनेश्वर की मौत हो गई थी. इस तरह वे हिंदुत्व को धार देने की रणनीति में भी फिट हैं. ईश्वर साहू ने टिकट मिलने के बाद कहा कि मेरे बेटे को न्याय मिले, इसके लिए हर हिंदू के घर जाकर न्याय की गुहार लगाऊंगा. बेटे की हत्या के समय सभी हिंदुओं ने मेरा समर्थन किया था. उन्होंने साथ ही ये भी कहा कि बीजेपी ने एक गरीब को अपना सदस्य बनने का मौका दिया, इसके लिए पार्टी को धन्यवाद. हिंदुत्व को धार देने के संकेत और गरीब कार्ड, दोनों की झलक ईश्वर के इस बयान में भी है.

साहू कितने प्रभावशाली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव 2019 में प्रचार के दौरान कहा था कि छत्तीसगढ़ में जो साहू समाज के लोग हैं, इसी समाज को गुजरात में मोदी कहा जाता है. बीजेपी छत्तीसगढ़ की सत्ता गंवाने के बाद लोकसभा चुनाव में सूबे की 11 में से नौ सीटें जीतने में सफल रही तो इसके पीछे मोदी के इस बयान से बने माहौल को भी श्रेय दिया गया.

अनुमानों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में साहू समाज की आबादी करीब 12 फीसदी है. कई सीटों पर जीत और हार तय करने में समाज के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यही वजह है कि बीजेपी हो या कांग्रेस, दोनों ही दल साहू समाज के अधिक उम्मीदवारों पर दांव लगाते रहे हैं.

2018 चुनाव में जीते थे 6 साहू

साल 2018 के चुनाव में बीजेपी ने सूबे की 51 सामान्य सीटों में से 14 पर साहू समाज के नेताओं को उम्मीदवार बनाया था. कांग्रेस ने समाज के आठ नेताओं पर दांव लगाया था. हालांकि, बीजेपी से केवल एक साहू चेहरे रंजना साहू को जीत मिली थी. वहीं, कांग्रेस के आठ में से पांच साहू नेता चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे जिनमें कसडोल सीट से शकुंतला साहू, अभनपुर सीट से धनेंद्र साहू, दुर्ग ग्रामीण से ताम्रध्वज साहू, डोंगरगांव से दलेश्वर साहू और खुज्जी से चन्नी चंदू साहू शामिल हैं.

2013 में 9 साहू पहुंचे थे विधानसभा

साल 2013 के चुनाव में बीजेपी से 12 और कांग्रेस से साहू जाति के आठ उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. बीजेपी के टिकट पर पांच और कांग्रेस के आठ में से चार उम्मीदवार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे. तब 90 सदस्यों वाली विधानसभा में नौ विधायक साहू समाज के थे जो आंकड़ों के लिहाज से देखें तो करीब 10 फीसदी पहुंचता है. पिछले चुनाव में बीजेपी के टिकट पर साहू समाज से आने वाले केवल एक उम्मीदवार को ही जीत मिल सकी थी. बीजेपी 15 साल बाद छत्तीसगढ़ की सत्ता से बाहर हुई तो इसके पीछे भी साहू समाज के छिटके वोट को प्रमुख वजह बताया गया.

बीजेपी ने इसबार साहू समाज को साधने के साथ ही ईश्वर के सहारे गरीब और हिंदुत्व का कार्ड चल दिया है. राजनांदगांव में शाह और रमन जैसे नेताओं के साथ मंच पर ईश्वर को जगह देकर बीजेपी ने बड़ा संदेश देने की कोशिश की है. अब ये रणनीति कितनी कारगर साबित होती है, ये तीन दिसंबर को चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा.

 

Dinesh Kumar Purwar

Editor, Pramodan News

RO.No. 13047/ 78

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button