RO.NO.12822/173
राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय

हरित क्रांति के जनक स्वामीनाथन को भारत रत्न, बदल दी थी कृषि की तस्वीर

RO.NO.12784/141

नई दिल्ली

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने शुक्रवार को घोषणा करते हुए कहा कि महान कृषिविज्ञानी डॉ. एमएस स्वामीनाथन को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। पीएम मोदी ने कहा कि कृषि और किसानों के कल्याण में उल्लेखनीय योगदान करने वाले डॉ. एमएस स्वामीनाथन को उनकी सरकार भारत रत्न से नवाज रही है।

पीएम मोदी ने लिखा, "यह बेहद खुशी की बात है कि भारत सरकार कृषि और किसानों के कल्याण में हमारे देश में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉ. एमएस स्वामीनाथन जी को भारत रत्न से सम्मानित कर रही है। उन्होंने चुनौतीपूर्ण समय के दौरान भारत को कृषि में आत्मनिर्भरता हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय कृषि को आधुनिक बनाने की दिशा में उत्कृष्ट प्रयास किए।"

उन्होंने आगे लिखा, "एक इनोवेटर और मेंटॉर के रूप में उन्होंने कई काम किए। उन्होंने छात्रों को सीखने और रिसर्च करने के लिए प्रोत्साहित किया। हम उनके इन अमूल्य काम को पहचानते हैं। डॉ. स्वामीनाथन के दूरदर्शी नेतृत्व ने न केवल भारतीय कृषि को बदल दिया है बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और समृद्धि भी सुनिश्चित की है। वह ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें मैं करीब से जानता था और मैं हमेशा उनकी बताई बातों और इनपुट को महत्व देता था।" हरित क्रांति के जनक डॉक्टर स्वामीनाथन को गेहूं और चावल की उच्च उपज देने वाली किस्मों को तैयार करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने भारत की कृषि पैदावार को बढ़ाने में जो भूमिका निभाई उसके लिए उन्हें हरित क्रांति का मुख्य वास्तुकार कहा जाता है।

पिछले साल हुआ था निधन

प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन का पिछले साल सितंबर में 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। उनका जन्म 7 अगस्त, 1925 को हुआ था। उनका पूरा नाम मनकोम्बु संबासिवन स्वामिनाथन था। इससे पहले कृषि के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा सन 1972 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

भारत को बनाया कृषि प्रधान देश

आज के कृषि प्रधान भारत को अकाल और भुखमरी से निजात दिलाने में डॉक्टर स्वामीनथन का योगदान जगजाहिर है। उन्होंने सबसे पहले गेंहू की एक बेहतरीन किस्म की पहचान की। ये मैक्सिकन गेहूं की एक किस्म थी। उनके इस कदम के बाद भारत में भुखमरी की समस्या खत्म हुई। इसके बाद गेंहू के उत्पादन में भारत आत्मनिर्भर बना। कभी हम बाहर से गेहूं धान आदि मंगाते थे लेकिन आज हम आयात करने वाले देश से एक प्रमुख निर्यातक देश बन गए हैं।

राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली को मजबूत करने में उनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण था। डॉ स्वामीनाथन विश्व खाद्य पुरस्कार (1987) के पहले विजेता थे। उन्हें 1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, 1987 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार, 1994 में शांति के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार, 1994 में यूएनईपी ससाकावा पर्यावरण पुरस्कार, 1999 में यूनेस्को गांधी स्वर्ण पदक और कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।

उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी अलंकृत किया गया था। वह भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष और खाद्य और कृषि संगठन, रोम के अध्यक्ष थे। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक और एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन, चेन्नई के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।

एम एस स्वामीनाथन कौन है

भारत में हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले एमएस स्वामीनाथन जिन्हें लोग ग्रेन गुरु से लेकर प्यार से SMS भी कहते थे. आज 28 सितंबर को 98 साल की उम्र में उनके निधन से देश को अपूर्णीय क्षति हुई है. पूरी दुनिया उन्हें भारत में हरित क्रांति के वास्तुकार के रूप में देखती है. उन्होंने देश के हर आम व्यक्त‍ि के लिए हित के काम किए. उन्होंने देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया. स्वामीनाथन जितना बीजों के जीनोम के बारे में समझते थे, उतना ही वो किसानों की जरूरतों के प्रति भी जागरूक थे.

खेती को वो पूरी तरह समझते थे
खेती की जटिलताओं को समझने की उनकी यही क्षमता उन्हें एक असाधारण व्यक्त‍ित्व बनाती है. ये साठ के दशक के मध्य की बात है जब भारत को लगातार सूखे का सामना करना पड़ा था. ऐसे कठ‍िन वक्त में किसानों को दूसरी फसल लेने के लिए प्रेरित करना एक चुनौती थी. ऐसे में विश्व स्तर पर कृषि अर्थशास्त्री अपने लोगों को सर्वाइवल के लिए पर्याप्त अनाज उगाने के भारत के प्रयासों को नकार रहे थे.
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री योगिंदर के.अलघ ने अपनी किताब में इसका जिक्र किया है कि उस दौर में फसल के पैटर्न और पैदावार पर अनुभव से तैयार डेटा और फीडबैक इकट्ठा करने के काम के लिए सरकार द्वारा चुने गए सभी जिला कलेक्टरों को ऐसी जानकारी साझा करने के लिए मैंने भी लिखा था. यहां तक कि जिन्होंने पहले कभी खेती नहीं की थी, उन्हें भी स्वामीनाथन के मार्गदर्शन से आत्मविश्वास मिला. उनमें मैं भी शामिल था.

पंजाब-हरियाणा की पहचान की
योगिंदर के.अलघ के अनुसार जिले-वार डेटा इकट्ठा करने की कवायद से हमें अच्छी कृषि वृद्धि दिखाने वाले जिलों की हरित क्रांति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आवश्यक प्रयासों को समझने में मदद मिली. व्यापक मानचित्र तैयार करने के दौरान स्वामीनाथन हमारे पीछे खड़े रहे. उपलब्ध सिंचाई सुविधाओं और व्यवहारिक जरूरतों पर उनकी अंतर्दृष्टि बहुत काम आई और हमें पंजाब और हरियाणा पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिली.

स्वामीनाथन टिकाऊ और विविध कृषि के लिए काम करने वालों के लिए ताकत का एक मजबूत स्तंभ रहे हैं. हालांकि, स्वामीनाथन आश्वस्त थे कि पंजाब और हरियाणा के मॉडल को हर जगह दोहराया नहीं जा सकता है. उन्होंने यह भी महसूस किया कि देश के अन्य हिस्सों में अलग-अलग फसल पैटर्न और मॉडल की आवश्यकता है. बाद में, यह उनका ही दृष्टिकोण था जिसने देश में स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का एक नेटवर्क बनाने में मदद की, कॉर्पोरेट्स की भागीदारी के लिए दरवाजे खोले और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित किया.

मिले हैं ये सम्माान
एमएस स्वामीनाथन को 1967 में 'पद्म श्री', 1972 में 'पद्म भूषण' और 1989 में 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया जा चुका है. स्वामीनाथन सिर्फ भारत ही नहीं दुनियाभर में सराहे जाते थे. उन्हें 84 बार डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया जा चुका था. उन्हें मिली 84 डॉक्टरेट की उपाधि में से 24 उपाधियां अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने दी थीं.

कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को 'फादर ऑफ ग्रीन रेवोल्यूशन इन इंडिया' यानी 'हरित क्रांति के पिता' भी कहा जाता है. 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुम्भकोणम में जन्मे एमएस स्वामीनाथन पौधों के जेनेटिक वैज्ञानिक थे. उन्होंने 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकसित किए थे.

 

 

Dinesh Purwar

Editor, Pramodan News

RO.NO.12784/141

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
× How can I help you?